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हिंदी कहानियां - भाग 25

| छलावे का डरावना एहसास |


| छलावे का डरावना एहसास |   उस समय मेरे पिताजी नगर परिषद अचलपुर मे नौकरी पर थे। ऊस वक्त ऊनकी ड्युटी परतवाडा से 3 कीमी दुर गौरखेडा के नाके पर लगती थी। गाडी का जमाना ना होने के कारण पिताजी सायकल से आना जाना करते थे । रात बेरात की ड्युटी हूआ करती थी। हमारा घर भी गौरखेडा मेँ होने के कारण एक रात पिताजी 1 बजे नाके के लिए निकले। संतरे के बगीचो की थंडक थी। रास्ते पर एक दो लाईटे थी । नाके पर पहूँचे बाद 20-30 मिटर के अंतर पर उन्हें एक बस दिखाई दी | वो बस वहा नाके पर आकर रुकी और उस बस के ड्राईवर ने कंडक्टर को नीचे उतरकर देखने को कहा कि नाका आया या नहीं | मेरे पिताजी को ये देखकर सुकून मिला कि चलो कोई तो बस आयी | मेरे पिताजी ने देखा कि नाके से कोई आदमी बाहर नहीं आया तो वो खुद ही अंदर चले गए | नाके के अंदर उन्होंने देखा कि अंदर एक आदमी बड़ी गहरी नींद में सो रहा था | मेरे पिताजी ने उसको उठाया और बोला “अरे बाहर गाडी आयी है और तुम अंदर आराम से सो रहे हो ” | वो आदमी एक बार तो चौंककर बोला कि “मैंने तो कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी ” | फिर भी वो मेरे पिताजी के कहने पर बाहर आया तो बाहर कोई बस नहीं थी | मेरे पिताजी तो बुरी तरीके से घबरा गए कि बस एकदम से कैसे गायब हो गयी | वो नाके वाला आदमी जानता था कि मेरे पिताजी ने जो देखा वो छलावा था | नाके वाले ने सिर्फ ये कहा कि गाँव वालो से इसके बारे में पूछ लेना वो सब कुछ तुम्हे बता देंगे | अगले दिन सुबह मेरे पिताजी ने एक गाँव वाले किसान से पूछा “कल रात १ बजे मुझे सवारियों से भरी एक बस दिखाई दी और थोड़ी देर बाद वो गायब हो गयी ” | तो उस गाँव वाले ने बताया कि आज से 5 साल पहले इसी नाके पर एक बस दुर्घटना हुई थी जिसमे ड्राईवर ,कंडक्टर समेत 20-30 यात्री मारे गए | तब से अब तक कई लोगो को उस बस समेत ड्राईवर कंडक्टर का छलावा नजर आता है | मेरे पिताजी ये सुनकर काफी घबरा गए | उसके बाद उन्हें वो बस कभी नजर नहीं आयी

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